चाहे कितने दीप जलाना

03-11-2004

चाहे कितने दीप जलाना

प्रो. हरिशंकर आदेश

चाहे कितने दीप जलाना।
सुधियों के दीपक न बुझाना॥
1.
जो भी तुम से रूठ गये हैं,
अनजाने ही छूट गये हैं,
उन्हें मनाकर बड़े प्यार से,
फिर से अपने पास बुलाना॥
2.
जिनका जीवन भार बना है,
विषमय यह संसार बना है,
सहानुभूति प्रलेप लगाकर,
उनके उर के व्रण सहलाना॥
3.
रंग न शेष, तरंग नहीं है,
मन में रंच उमंग नहीं है,
आकर्षण नूतन भर-भर कर,
उनका जीवन सरस बनाना॥
4.
पंगु हो गईं अभिलाषायें,
भंग हुईं जिनकी आशायें,
उनको दे सान्त्वना सुहृदयता,
सारे सपने सत्य बनाना॥
5.
प्यार नाम है त्याग - क्षमा का,
जीवन की अक्षुण्ण सुषमा का,
आत्मीयता का प्रसाद दे,
अपनों को फिर हृदय लगाना॥
6.
एक बार जिसको अपनाया,
पुलकित होकर कण्ठ लगाया,
भ्रान्ति-भँवर में डूब अचानक,
उसको कभी नहीं बिसराना॥
7.
भूल हुई जो उसे भुलाओ,
वर्त्तमान को सुखद बनाओ,
जाने अगला पल क्या लाये?
जीवन का है नहीं ठिकाना॥
8.
दु:ख स्वयमेव दूर जायेगा,
पल-पल नव सुख बरसायेगा,
निज मन का आँगन विस्तृत कर,
पुन: प्यार के दीप सजाना॥
9.
मन से सकल मलिनता जाये,
जीवन में अमलिनता आये,
रोष-घृणा का तिमिर दूर कर,
प्रिय! शुभ दीपावली मनाना॥
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें