ब्रह्म
शेष अमितवह मौजूद था जीवन में
रिश्वत की तरह।
था पर नहीं था,
नहीं था पर था-
विद्या, शक्ति, श्रद्धा हर रूप में,
निराकार ब्रह्म कहीं के!!
वह मौजूद था जीवन में
रिश्वत की तरह।
था पर नहीं था,
नहीं था पर था-
विद्या, शक्ति, श्रद्धा हर रूप में,
निराकार ब्रह्म कहीं के!!