भूखा हूँ माँ!
डॉ. रामकेश्वर तिवारीमाँ अपने रक्तकणों से सिंचित कर
अपने चेहरे को मुझमें प्रतिबिम्बित कर
क्यांे मुझे तुमने युवा किया?
पुनः मुझे अवस्था बाला दे दो ना!।
भूखा हूँ माँ निवाला दे दो ना!।1।
न जाने उम्र के इस दहलीज़ पर
क्यों रख दी तुम मुझे लीज पर?
नहीं चाहिए था तुम्हे ऐसा करना,
अपने स्नेह का शिवाला दे दो ना!।
भूखा हूँ माँ निवाला दे दो ना!।2।
बचपन में भूखने पर भोजन देती
ज़िद पर अड़ने पर चाँद ना देती,
अब क्यों मुझे दे दी वैसी पूर्ण चाँद?
मुझे जीवन पुनः बचपन वाला दे दो ना!।
भूखा हूँ माँ निवाला दे दो ना!।3।
युवा होने पर तूने क्यों दूर किया?
मुझे परवश होने को क्यों मजबूर किया?
क्या तुमने किया है मेरे साथ न्याय?
ठंड लग रही है आँचल का पाला दे दो ना!।
भूखा हूँ माँ निवाला दे दो ना!।4।
तुम्हारा मस्तक उँचा करने को करता हूँ हर कर्म
प्रतिकर्मों में स्मरण कर निभाता शैशवधर्म,
बचपन में तुम देती थी जो आशीष, वही
कुलदीपक बनने की, आशीषप्याला दे दो ना!।
भूखा हूँ माँ निवाला दे दो ना!।5।
कुछ नया करने को सोचता प्रतिपल
तुम्हे महसूस करके जीता पल दो पल,
अपने विचार वितर्कों से रोज़ जीता - मरता हूँ,
मातः! स्वहृदय की रजनीबाला दे दो ना!।
भूखा हूँ माँ निवाला दे दो ना!।6।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- शोध निबन्ध
-
- आर्षकालीन राष्ट्रीयता
- धर्म का मौलिक स्वरूप
- प्रमुख उपनिषदों में मानवीय मूल्यों की चर्चा
- भवभूति कालीन समाज में यज्ञ-विधान
- भारतीय संस्कृति के मूल तत्व
- भारतीय संस्कृति में लोक परंपरा "दोहद" का महत्व
- भाव सौन्दर्य: कविकुलगुरु कालिदास के अनुसार
- महाभारत के शान्ति पर्व में 'राजधर्म' का स्वरूप
- यज्ञशब्दविवेचनपूर्वक पंचमहायज्ञों की संक्षिप्त मीमांसा
- वैदिक साहित्य में तीर्थ भावना का उद्भव एवं विकास
- वैदिकी सभ्यता में आवास का स्वरूप
- संस्कृत भाषा का वैशिष्ट्य
- संस्कृत साहित्य में रसावगाहन
- सामाजिक आलेख
- कविता
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-