भीषण गर्मी
कुमारी अन्नुश्री
भीषण गर्मी हाहाकार मचा,
चारों ओर छाया सन्नाटा,
देख लोगों की भीड़ घटी,
दोपहरी में राहगीरों की बिवाई फटी,
कर रहा इंतज़ार बारिश का,
देख भीषण गर्मी हाहाकार मचा,
चारों ओर है सन्नाटा ही सन्नाटा।
प्रातः काल उल्लास भरा,
मध्याह्न होते ही पारा चढ़ा,
शाम की समीर दे सबको ख़ुशी,
फिर क्यों सब प्रकृति से रूठी,
देख भीषण गर्मी हाहाकार मचा,
चारों ओर है सन्नाटा ही सन्नाटा।
दोपहरी में आग बरसे,
हर कोई जल बिन तरसे,
मनुष्य का है कोई संबंल,
पशु-पक्षी हो रहे विकल,
देख भीषण गर्मी हाहाकार मचा,
चारों ओर है सन्नाटा ही सन्नाटा।
सब थककर परेशान हुए,
कब शीतल समीर बहे,
तरसे दृग जलद देखने को,
कब नीर मिले मही को,
देख भीषण गर्मी हाहाकार मचा,
चारों ओर है सन्नाटा ही सन्नाटा।