बेरोज़गार की व्यथा!
सुनिल यादव 'शाश्वत’गर्मी बीती, वर्षा सूखी,
अब आ धमकी सर्दी,
बेरोज़गार की चाहत
जल्दी आये कोई भर्ती।
रोज़गार की चाहत में,
बीत कई साल गए,
नींद गयी, चैन गया,
उड़ते सर के बल गए।
तुझ बिन सूना जीवन,अँधेरा छाए,
तू आ जाये तो सवेरा हो जाए,
अब दाँत भी चले जाएँ,
नौकरी तू उससे पहले आए।
कोई पूछे तो कहता हूँ,
अभी तैयारी ही करता हूँ,
तुम्हे क्या मालूम,
मैं कितने ज़ुल्म सहता हूँ।
घर से दूर रहता हूँ,
दिन-रात पड़ता हूँ,
तेरे बिन कैसा होगा जीवन?
ये सोचकर ही डरता हूँ।