बचपन की याद
भानु प्रताप सिंहधूमिल यादों के बीच
बचपना जब लौट आता है,
सुरभित होते है दिगंत
पवन का झंझावात॥
मरांद उत्सव सा वह पीत पराग
क्रीड़ा स्थल का वह अनुराग
रत्न सौंध सी वह मिट्टी
मरु मरीचिका सी वह सृष्टि॥
सुनहरी लगती थी संसृती
कितनी अच्छी थी स्मृति
दग्ध हृदय कहता इकबार
उसका फिर हो अभिसार॥
एक बार फिर देखा छिन्नतार
कोई नहीं बचा सुनी झनकार
अकेला पथिक कहां तक जाऊँ
जीवन का अभिषेक कहाँ कर पाऊँ॥
मौन रहूँ या व्रत तोड़ूँ
या जीवन की डगर मै छोड़ूँ
तुम्हीं बता दो हे नाथ
कैसे पाऊँ खोया प्रात॥