अमर क्रांतिकारी राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ शाह

01-10-2023

अमर क्रांतिकारी राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ शाह

राजेश भंडारी ‘बाबू’ (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

18 सितम्बर, बलिदान दिवस विशेष

 

इतिहास में गोंडवाना राजवंश के क्रन्तिकारी राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह का नाम अमर क्रांतिकारियों के नाम से अंकित है जिन्होंने अंग्रेज़ी शासन को हिला कर रख दिया था। और वनवासी क्रांति की शुरूआत की थी। 1857 की क्रांति में दोनों क्रांतिवीरों का अहम योगदान था जो 15 अगस्त 1947 को आज़ाद भारत के रूप में फलित हुआ। 

कहते हैं कि दोनों राजवंशी राजा 1857 की क्रांति के प्रथम अमर शहीद थे। जबलपुर शहर में अब वह स्थान आज़ादी का तीर्थ बन चुका है, जहाँ पिता-पुत्र को बंदी बनाकर रखा गया था। अभी यहाँ वन विभाग का ऑफ़िस है, जिसे स्मारक बनाने की तैयारी है। 18 सितंबर, 1857 को दोनों को अलग-अलग तोप के मुँह पर बाँध उड़ा दिया गया था। दोनों ने हँसते-हँसते मौत को गले लगा लिया, लेकिन अँग्रेज़ों के सामने झुकना पसंद नहीं किया। 

इस घटना के बाद पूरे गोंडवाना साम्राज्य में अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बग़ावत शुरू हो गई। शंकर शाह, रघुनाथ शाह के बलिदान ने लोगों के मन में अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ एक ऐसी चिंगारी को जन्म दे दिया जो बाद में शोला बन गई। इतिहासकार डॉ. आनंद राणा के मुताबिक़ गोंड राजवंशों का उत्थान काल 1292 से माना जाता है। एक लंबे कालखंड तक स्वतंत्र राज्य के रूप में अपनी पहचान क़ायम कर चुके गोंड राज्य में एक समय ऐसा भी आया, जब सत्ता के लिए संघर्ष शुरू होने लगा।

20 दिसंबर 1817 को अँग्रेज़ों ने भोंसले से जबलपुर को छीन लिया। शंकर शाह ने ब्रिगेडियर जनरल हार्डीमेन से मुलाक़ात कर राज्य पर अपना दावा पेश किया। अँग्रेज़ों ने उनकी माँग को सिरे से ख़ारिज कर दिया। अब यहाँ से राजा शाह का संघर्ष मराठों से ना होकर अँग्रेज़ों के साथ शुरू हो गया। इसके बाद अँग्रेज़ों का आक्रोश शाह के ख़िलाफ़ लगातार बढ़ता चला गया। थोड़ा बहुत ही सही इस युद्ध में अँग्रेज़ों का भी नुक़्सान हुआ, जो उन्हें बर्दाश्त नहीं था। यहीं से शंकर शाह ने बिना सामने आए अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया। 1857 आते-आते देशभर में अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रांति की ज्वाला भड़क चुकी थी। इसमें राजा शंकर शाह भी बेटे रघुनाथ शाह के साथ शामिल थे। हालाँकि किसी तरह गुरिल्ला युद्ध के बारे में अँग्रेज़ डिप्टी कमिश्नर लेफ्टिनेंट क्लार्क को भनक लग गई। क्लार्क ने सेना के साथ शाह की सेना पर आक्रमण कर दिया। इस हमले में शंकर शाह के हज़ारों सैनिक मारे गए। 

अँग्रेज़ एक दिन अचानक राजा के घर जा पहुँचे, जहाँ से उन्होंने राजा शंकर शाह, उनके बेटे कुँवर रघुनाथ शाह समेत अन्य सहयोगियों को गिरफ़्तार कर लिया। अंग्रेज़ी सरकार ने राजा को देशद्रोही साबित करते हुए उन्हें तोप के मुँह में बाँधकर उड़ा देने की सज़ा सुनाई। 18 सितंबर की वो काली रात भी आई, जब उन्हें तोप के मुँह पर बाँधा गया। तोप के मुँह से बाँधे जाने के बाद भी शंकर शाह की आँखों में पहले वाली चमक बरक़कार थी, भय मानों उनसे कोसों दूर हों। राजा ने तोप से बाँधने वाले अंग्रेज़ी सैनिक से कहा कि कसकर बाँधो, कहीं कसर ना रह जाए। इसके बाद उन्होंने अपनी बुलंद आवाज़ में भारत माँ का जयकार लगाया और फिर राजा वीरगति को प्राप्त हो गए। वहीं, दूसरी ओर मौत क़रीब होने के बाद भी गिरफ़्तार कुँवर रघुनाथ शाह ने बिना डरे अँग्रेज़ों से लगातार सिर उठाकर बात की। इतिहासकार बताते हैं कि पिता-पुत्र के बलिदान के बाद रानी फूलकुँवरि ने अँग्रेज़ों से घिर जाने के बाद ख़ुद ही कटार सीने में उतार ली। 

राजेश भंडारी “बाबू

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