जला करते हैं
राख से निकलकर अँधेरे
साँस के टुकड़े को
जगाने के लिये, 
उम्र की नापाक
हथेली से फिसलकर
जो बियाबान जंगलों में घिरी
संकीर्ण गुफाओं में छुपा
नींद को ओढ़े हुए
सोने का बहाना करता है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में