अचरज में दरवाज़ा

15-04-2025

अचरज में दरवाज़ा

नरेन्द्र सिंह ‘नीहार’ (अंक: 275, अप्रैल द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

दरवाज़े पर दस्तक देकर, 
हवा हुई छूमन्तर।
खिड़की-रोशनदान को देखा, 
उसने ज़रा पलटकर। 
हिलने से जब तंद्रा टूटी, 
अचरज में दरवाज़ा। 
 
दूर-दूर तक नहीं दीखता, 
किसने खटकाया भागा? 
थोड़ा ग़ुस्सा डर भी थोड़ा, 
फिर दरवाज़ा मुस्काया। 
चलो किसी ने आज सुबह, 
आकर मुझे जगाया। 
 
लेकर फिर अंगड़ाई बोला, 
आओ हवा सुहानी। 
खिड़की-रोशनदान कहें, 
थी उसकी ही शैतानी॥

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