आवरण पृष्ठों का कवि
प्रभांशु कुमारआवरण पृष्ठों का कवि बनकर
मैं गा सकता हूँ
गीत आम आदमी
के संघर्ष का,
दे सकता हूँ शब्द
आम आदमी की
पीड़ा को।
इसके विपरीत
आवरण पृष्ठ का
कवि बन जाने की
चुकानी होगी
भारी क़ीमत
मेरी आत्मा को।
शायद आवरण पृष्ठ का
कवि होकर
मैं पा लूँ
पद, प्रतिष्ठा, पुरस्कार
यहाँ तक कि
राजसत्ता भी
मगर मेरी आत्मा
जो बसती है
गाँव की सौंधी
मिट्टी में,
मेरी जवानी की नींदें
जिनमें महकती है
मेरे बचपन की ख़ुशबू
इन सबको त्यागना
होगा मुझे
आवरण पृष्ठ का
कवि होकर।
मैं नहीं चाहता
कि मेरी कविता
केवल शब्दों का
दुरूह मायाजाल
बनकर रह जाए।
मैं तो लयबद्ध
करना चाहता हूँ
हाशिए पर
मृतप्राय पड़े
जन-जन की
पीड़ा गाथा को
वही पीड़ा जो
बहुत गहराई तक
उतर जाती है
आम आदमी के
अंतस में
तब जब उसकी संतान
उसी की
आँखों के अश्रु पीकर
सुनहरे भविष्य
का दिवास्वप्न लेकर
उसी के गले लग
सो जाती है
अपनी सिसकियों को
उसी की छाती में छुपाये
ऐसे में
मैं कैसे हो जाऊँ
आवरण पृष्ठ का कवि