आशा की किरण
डॉ. आशा मिश्रा ‘मुक्ता’वह कौन है जो कर रहा है कोशिश
जाने की वहाँ जहाँ घनघोर अँधेरा है
दे रहा है दस्तक वह फिर भी
निरंतर बंद द्वार को
कोई तो खोले और ले ले उसे
अपनी आग़ोश में
एहसास कराए सुरक्षा का
वह सोचती है
घनघोर अँधेरा सुरक्षित रखेगा उसे
आसमाँ में घिरे गिद्धों से
उनके ख़तरनाक पंजों से
जो नोचता है खसोटता है
मांस क्या
ख़ून का एक क़तरा तक नहीं छोड़ता।
कोशिशों के बाद आख़िर
खुलता है वह द्वार
नज़र आती है रोशनी की चंद किरणें
जिसकी प्रतीक्षा थी उसे
कोशिश करती है पहचानने की
उन आशा की किरणों को
जो बचाएगा उसे अँधेरों से
पर दुविधा में है
अँधेरों से तो बच जाएगी वह किसी तरह
पर क्या उन किरणों से बच पाएगी?
जिन पर है यक़ीं उसे?
1 टिप्पणियाँ
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Good composition