आप रहिए तो सलामत ये दुआ कर जाऊँगा
अविनाश भारती
आप रहिए तो सलामत ये दुआ कर जाऊँगा,
आपकी जानिब से सारे ग़म भुला कर जाऊँगा।
अंजुमन में इस तरह ज़ाहिर करूँगा इश्क़ को,
मैं भी कोई ख़ूबसूरत-सी ख़ता कर जाऊँगा।
दिल की बातों को छुपा सकते नहीं हरगिज़ कभी,
मैं जहाँ वालों को बातें सब बता कर जाऊँगा।
प्यार करते हैं सही या दुश्मनी करते हैं आप,
आपकी आँखों में देखूँगा पता कर जाऊँगा।
चाहे करलें जितनी नफ़रत इश्क़ वालों से मगर,
आपके दिल में मोहब्बत यूँ जगा कर जाऊँगा।
कुछ नहीं बच जाएगा अब राज़ लोगों से यहाँ,
मैं ‘अविनाश’ ज़माने को सुना कर जाऊँगा।