आई दिवाली लाई ख़ुशहाली
जागृति शुक्ला
फिर से आई दिवाली,
हर तरफ़ छाई ख़ुशहाली।
रोशन हैं घर और आँगन,
सब ओर दीपों की आवलि॥
फिर से आओ दीया जलाएँ,
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
वर्तमान के मोहजाल में,
श्रेष्ठ जीवन ना हम भूल जाएँ॥
पापा लाएँ एक फुलझड़ी,
दीया लेकर मम्मी खड़ी।
श्रेष्ठ पूजन की करे तैयारी,
सबको बुलाए बारी-बारी॥
आओ पापा दीया जलाएँ,
समाज से बुराई दूर भगाएँ।
माता की हम करें पूजा,
उनके जैसा ना कोई दूजा॥
तोरण से हम घर को सजाएँ
फूलों से गृह को महकाएँ।
दादा-दादी ले आएँ मिठाई,
बाबू ने वह भरपेट खाई॥
काश! दिवाली हर रोज़ आती,
सबके जीवन में ख़ुशियाँ लाती।
धन-संपदा होती सबके पास,
जग में होता ना कोई उदास॥