शायरी के इस सरो-सामान का

01-02-2016

शायरी के इस सरो-सामान का

रामश्याम ‘हसीन’

 
शायरी के इस सरो-सामान का
नाम कुछ रख दो मेरे दीवान का
 
लाख समझाता हूँ इक सुनता नहीं
क्या करूँ मै इस दिले नादान का
 
याद, तनहाई, तड़प, ग़म, इज़्तराब
ध्यान रखता हूँ मैं हर मेहमान का
 
छोड़ दी कश्ती ख़ुदा के नाम पर
अब हमें क्या डर किसी तूफ़ान का
 
और पैसा और पैसा चाहिए
हो गया पैसा ही रब इंसान का

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