प्रिय तुम
ज्योति त्रिवेदीप्रिय तुम स्पंदन मेरे मन के
तुम स्वासों का परिहास
प्रिय तुम ज्योति नयनों की
तुम ही अधरों का हास
प्रिय चलती फिरती देह मेरी के
तुम ही प्राण सी आस
प्रिय तुम निवेदन मेरे मन के
तुम ही हो जीवंत विश्वास
प्रिय तुम विलेख मेरे मन के
तुम करते लेखनी में वास
प्रिय तुम राम मेरे हृदय वन के
तुम यही करो सदा निवास
प्रिय तुम स्पंदन मेरे मन के