प्रभो

प्रियांशी मिश्रा (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

प्रभो! मैं तिरंगा बन जाऊँ
आसमान में मैं फहराऊॅं
 
प्रभो! मैं फ़ौजी बन जाऊँ 
तन-मन से संकल्पित होकर
भारत माँ को जीत दिलाऊँ
 
अगर ऐसा हो न सके तो, 
बंदूकों के घनगर्जन में 
भारत की प्यारी बिटिया बन
आतंकियों को मर्दित करती
पावन धरा पर मैं सो जाऊँ 
 
प्रभो! मैं पुष्प बन जाऊँ 
वीरों की पावन श्रद्धांजलि में 
हँस-हँसकर अर्पित हो जाऊँ
 
प्रभो! मैं मिट्टी बन जाऊँ 
तप्त रक्त से भीग-भीगकर
वीर पुत्र को अंक लगाऊँ
प्रभो! मैं तिरंगा बन जाऊँ। 

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