पहाड़
सतीश सिंहचाहता था
मैं भी जीना स्वच्छंद
थी महत्वाकांक्षाएँ मेरी भी
पर अचानक!
किसी ने कर दिया
मुझे निर्वस्त्र
तो किसी ने खल्वाट
तब से चल रहा है
सिलसिला यह अनवरत
और इस तरह
होते जा रहे हैं
मेरे जीवन के रंग, बदरंग
चाहता था
मैं भी जीना स्वच्छंद
थी महत्वाकांक्षाएँ मेरी भी
पर अचानक!
किसी ने कर दिया
मुझे निर्वस्त्र
तो किसी ने खल्वाट
तब से चल रहा है
सिलसिला यह अनवरत
और इस तरह
होते जा रहे हैं
मेरे जीवन के रंग, बदरंग