कुछ सदा में रही कसर शायद
नीरज गोस्वामीकुछ सदा में रही कसर शायद
वरना जाते यहीं ठहर शायद
दर्द तन्हाई का ना पूछ मुझे
उससे बदतर नहीं क़हर शायद
तेज़ थी धूप छा गई बदली
तेरे आने का है असर शायद
बोलती बंद आजकल उसकी
आईना आ गया नज़र शायद
गीत पत्थर भी हैं लगे गाने
तेरे छूने की है ख़बर शायद
फिर जलाईं हथेलियाँ उसने
शमा आँधी से बचाकर शायद
सिल गये होंठ दुश्मनों के तभी
जबसे उसने कसी कमर शायद
लो घटा याद की है गहराई
अब करेगी ये आँख तर शायद
सच अकेला है भीड़ में नीरज
कल ज़माना करे क़दर शायद
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