झूठ को सच बनाइए साहब
नीरज गोस्वामीझूठ को सच बनाइए साहब
ये हुनर सीख जाइए साहब
छोड़िए साथ इस शराफ़त का
नाम अपना कमाइए साहब
फल है देता तो खाद पानी दो
वरना आरी चलाइए साहब
घर ये अपना नहीं चलो माना
जब तलक हैं सजाइए साहब
ताज पहनोगे सोचते हो कहाँ
अपने सर को बचाइए साहब
वो ना दिल में तो है कहाँ नीरज
हमको इतना बताइए साहब
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