ए ज़िंदगी
हेमंत कुमार मेहराआओ कभी, ज़रा हिसाब कर लें,
क्या कुछ तूने दिया,
क्या कुछ मैंने किया,
वादा, निबाह और वो . . .
तमाम ऊल-जलूल सी बातें,
बीत गयी, काट दी,
या कि गुज़ार दी मैंने,
मगर ऐसा तो कुछ भी नहीं,
तुझको हर लम्हा जिया है मैंने
ए ज़िंदगी,
आओ कभी, ज़रा हिसाब कर लें