आवारगी फ़िजूल है
रामश्याम ‘हसीन’
आवारगी फ़ुज़ूल है, अब घर तलाश कर
दरिया! तू जल्द अपना मुक़द्दर तलाश कर
हमवार राह चलना सिखाती नहीं कभी
बेहतर है रास्तों में तू ठोकर तलाश कर
मुंसिफ़ को कौन देगा तेरे क़त्ल का सुबूत
मक़तल में जा के अपना कटा सर तलाश कर
मज़हब की एक क़ैद नई मत बता हमें
दीवार हर तरफ़ है कोई दर तलाश कर
मंज़िल की जुस्तजू में कहाँ आ गया “हसीन“
अब लौट और अपने लिए घर तलाश कर