प्रवीण प्रणव 

प्रवीण प्रणव 

प्रवीण प्रणव 

बिहार के ग्राम्य अंचल में पलने, बढ़ने के पश्चात् सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन में देश के ख्याति लब्ध संस्थानों जैसे IIM Calcutta और XLRI Jamshedpur से उच्च शिक्षा प्राप्त कर बहुराष्ट्रीय कम्पनी माइक्रोसॉफ़्ट में डायरेक्टर, प्रोग्राम मैनेजमेंट के तौर पर अपनी मिट्टी की सुगंध से वंचित होकर अपने तमाम पारंपरिक संस्कारों के साथ हैदराबाद की महानगरीय संस्कृति में एडजस्ट करने की जद्दोज़ेहद में लगे युवा प्रवीण प्रणव, अपने जीवनानुभवों के कई स्तरों से गुज़रते हैं। प्रवीण प्रणव के दो प्रकाशित काव्य संकलन हैं – ‘खलिश’ और ‘चुप रहूँ या बोल दूँ’। 

एक आम संवेदनशील हिन्दुस्तानी आज जिन सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक विसंगतियों, संत्रासों से हर दिन रू-ब-रू होता है, जीवन मूल्यों में होते ह्रास से बेचैन होता है, इन संग्रहों का रचनाकार भी उन स्थितियों से गुज़रता है। लेकिन जहाँ अन्य लोग चुप रहते हैं या कोसते हैं यहाँ सब मगर, करता कोई कुछ भी नहीं, वहाँ इनमें आवाज़ उठाने, बोलने की छटपटाहट है। यह छटपटाहट, ज़ेहन में उमड़ते ख़्याल, कुछ न कह पाने व कहीं कुछ न कर पाने की टीस एक सॉफ़्टवेयर प्रोफ़ेशनल को स्वतः स्फूर्त प्रक्रिया के रूप में लेखन के लिए बाध्य करते हैं। वे सरल, सपाट बयानों के माध्यम से, बिना क्लिष्ट मुहावरों के सामान्य जन का मसौदा उठाते हैं और उनकी आवाज़ को प्रतिध्वनित कर उन्हीं तक अपने शब्दों में पहुँचाते हैं। 

दरअसल, प्रवीण प्रणव के ग़ज़लों, नज़्मों, गीतों का संग्रह आज के आदमी द्वारा झेले जा रहे तमाम विसंगतियों, संत्रासों का मुकम्मल आईना है जिसमें हर कोई अपना चेहरा देखता है, अपने ही आवाज़ की प्रतिध्वनि सुनता है। प्रवीण प्रणव की रचनाएँ, उनकी घुटन को, उनकी मज़बूर ख़ामोशी को एक सशक्त एवं सार्थक आवाज़ देने की उम्मीद भरी कोशिश है और इस प्रक्रिया में वे दुष्यन्त कुमार और अदम गोंडवी की परंपरा को आगे बढ़ाते नज़र आते हैं।

प्रवीण ने साहित्य की कई विधाओं में अपनी छाप छोड़ी है। प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘पुष्पक साहित्यिकी’ के संपादक के तौर पर इनके द्वारा लिखी जाने वाली शृंखला ‘शख्सियत’, पाठकों द्वारा सराही जाती रही है। इनके द्वारा लिखी गई समीक्षात्मक टिप्पणियाँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। साहित्यिक विषयों पर इनके द्वारा लिखे गये शोधपरक लेखों ने साहित्यिक शख्सियतों का ध्यान आकृष्ट किया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इतनी साहित्यिक सक्रियता और उपलब्धियों के बावजूद प्रवीण प्रणव अपने आप को साहित्यकार की बजाय पाठक की श्रेणी में रखा जाना ज़्यादा पसंद करते हैं