ज़िंदगी

विकास वर्मा

कुछ अतीत की स्मृतियों के भीगे-से पल,
कुछ भविष्य के सपनों की धुँधली-सी तस्वीरें, 
और बस,
सृजनहीन वर्तमान का प्रतिक्षण,
यूँ ही हाथों से फिसलते जाना….

 

कितना सिमट जाती है ज़िंदगी कभी-कभी!

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