ज़िन्दगी
महेश पुष्पददौड़ रही है नंगे पाँव चिलचिलाती धूप में,
मुद्दत से प्यासी है कोई साया नहीं मिला।
ख़ुशियाँ जो मिली सब बेगानी हो गई,
दर्द सब अपने थे कोई पराया नहीं मिला,
महफ़िले साक़ी का सजदा न किया अब तक,
और मौत की गलियों की तैयारी हो गई,
नाबालिग, नासमझ है ख़्वाहिशें कई दिल में,
और ज़िन्दगी तू अरमानों की हत्यारी हो गई।
देगी कभी तोहफ़ा बेशुमार ख़ुशियों का,
या तेरे दर्द का इम्तेहान बाक़ी है,
कर दे मेरी तमन्नाओं को नेस्तनाबूद,
मिटा दे उम्मीदों का जो हर निशान बाक़ी है।
एक दिन नाम अपना भी रोशन होगा ज़माने में,
या उम्र यूँ ही गुज़र जायगी दो रोटी कमाने में।
होगी बादशाहत हमारी हर दर पे सलाम होगा,
या साँसों का सिलसिला यूँ ही तमाम होगा।
2 टिप्पणियाँ
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Thanks
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Awesome sir ji