यादें (दीपा जोशी)
दीपा जोशीतुमसे अघिक दृढ़ तुम्हारी यादें निकली
तुम बिछुड़ कर दूर चले गए
ये आज तक मुझे न छोड़ पाई
तुम मूर्त थे
हालातें के वेग में न रुक पाए
ये अमूर्त थीं
शायद तभी, अपने अस्तितव को बचा पाईं
तुमसे अधिक दृढ़ तुम्हारी यादें निकली
जो साथ तुम न दे पाए
वह इन यादों ने दिया
जो पल हम संग न जी पाए
वह इन यादों में जीया
आज तुमसे अधिक प्रिय
ये यादें है मुझे
तुम तो मिलकर
फिर न जाने कहाँ खो जाओगे
ये यादें
अन्तिम साँसों तक भी
न छोड़ेंगी, मुझे
तुमसे अधिक दृढ़ तुम्हारी यादें निकली
मेरा मानना है कि
तुम एक रोज फिर मुझे पुकारोगे
अपनी हर भूल स्वीकारोगे
पर कहीं यह विश्वास
एक भ्रम न निकले
मेरा और इन यादों का
अमिट संगम न हो निकले...
अमिट संगम न हो निकले...