ज़िक्र तक हट गया फ़साने से
लोग जब हो गये पुराने से
बात सुनते नहीं बुज़ुर्गों की
हैं ख़फ़ा उनके बुदबुबाने से
जो है दिलमें जुबां पे ले आओ
दर्द बढ़ता बहुत दबाने से
तू मिला आँख यार क़ातिल से
ना पसीजेगा गिड़गिड़ाने से
याद आये तो जागना बेहतर
मींच कर आँख छटपटाने से
राज़ बस एक ही ख़ुशी का है
चाहा कुछ भी नहीं ज़माने से
ग़म के तारे नज़र नहीं आते
चाँद के सिर्फ़ मुस्कुराने से
देख बदलेगी ना कभी दुनिया
तेरे दिन रात बड़बड़ाने से
बुझ ही जाना बहुत सही यारों
बे सबब यूँ ही टिमटिमाने से
तुम बुरे को बुरा कहो नीरज
यही अच्छा है फुसफुसाने से