वो ना महलों की ऊँची शान में है

15-07-2007

वो ना महलों की ऊँची शान में है

नीरज गोस्वामी

वो ना महलों की ऊँची शान में है
जो  सूकूँ गाँव के मकान  में है


ढूँढ  मत यार प्यार को दिल में
वो मिले अब किसी दुकान में है


हम को बस हौसला परखना है
तू  चला तीर जो कमान में है


लूटा  उसने ही सारी फ़सलों को
जिसे समझे थे हम मचान में है


बोल  कर  सच हुए हैं शर्मिन्दा
क्या  करें मर्ज़ खानदान में है


जिसको बाहर है खोजता फिरता
वो  ही हीरा  तेरी खदान में है 


ज़िक्र तेरा  ही हर  कहीं नीरज
जब तलक़ गुड़ तेरी ज़बान में है

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