वेदना का व्याख्याकार - 5

21-10-2017

वेदना का व्याख्याकार - 5

विकास वर्मा

मूल कहानी – दि इंटरप्रेटर ऑफ मैलडीज़ (अंग्रेज़ी)
लेखिका : झुम्पा लाहिरी 
अनुवादक : विकास वर्मा

भाग- 5

"आपको हैरानी हुई?" मिसेज़ दास ने इस तरह पूछा कि उन्हें बहुत सावधानी से अपने शब्दों का चयन करना पड़ा।

"यह इस तरह की बात नहीं है जिसका अन्दाज़ा कोई लगा सके," मिस्टर कापसी ने धीरे-से जवाब दिया। उन्होंने कमल के तेल वाला बाम वापस अपनी जेब में रख लिया।

"नहीं, बिल्कुल नहीं। और बेशक़ कोई जानता भी नहीं। कोई भी नहीं। मैंने पूरे आठ साल इसे राज़ रखा है।" उन्होंने अपनी ठोड़ी तिरछी करते हुए मिस्टर कापसी को देखा, जैसे कि इस बात को एक नए नज़रिए से देखना चाहती हों। "लेकिन अब मैंने आपको बता दिया है।"

मिस्टर कापसी ने सिर हिलाया। अचानक उन्हें प्यास महसूस हुई और उनका माथा गरम हो गया और बाम लगाने के कारण थोड़ा सुन्न भी। उन्होंने सोचा कि मिसेज़ दास से थोड़ा पानी माँग लें, लेकिन फिर ऐसा न करने का फ़ैसला किया।

"हम मिले जब हम बहुत छोटे थे," उन्होंने बताया। उन्होंने कुछ ढूँढ़ने के लिए अपने स्ट्रॉ बैग में हाथ डाला, फिर मुरमुरे का पैकेट बाहर निकाल लिया। "आप लेंगे?"

"नहीं, शुक्रिया।"

उन्होंने मुट्ठी भर मुरमुरे अपने मुँह में डाले, अपनी सीट में थोड़ा नीचे तक धँस गईं, और मिस्टर कापसी से नज़रें हटाकर, कार की अपनी तरफ़ की खिड़की से बाहर देखने लगीं।

"हमारी शादी हुई तो हम अभी कॉलेज में ही थे। हम हाई-स्कूल में थे जब हमने प्रपोज़ किया। बेशक़, हम एक ही कॉलेज में पढ़े। तब हमें अलग होने का ख़याल भी नहीं आता था, एक दिन के लिए भी नहीं, एक मिनट के लिए भी नहीं। हमारे माँ-बाप एक दूसरे के सबसे गहरे दोस्त थे और एक ही शहर में रहते थे। अपनी पूरी ज़िन्दगी हर वीकेंड मैंने उसे अपने सामने देखा, या तो हमारे घर में या उनके। हमें साथ खेलने के लिए ऊपर भेज दिया जाता था, जबकि हमारे माँ-बाप हमारी शादी के बारे में मज़ाक किया करते थे। ज़रा सोचिए! उन्होंने किसी भी बात पर हमें टोका नहीं, हालाँकि एक तरह से मुझे लगता है कि यह सब एक ख़ास इरादे से ही किया जाता था। शुक्रवार और शनिवार की उन रातों को हम क्या कुछ नहीं करते थे, जबकि हमारे पेरेंट्स नीचे बैठे चाय पी रहे होते थे.......मैं कितने ही क़िस्से आपको बता सकती हूँ, मिस्टर कापसी।"

कॉलेज में राज के साथ ही अपना सारा वक़्त बिताने की वजह से, उन्होंने कहना जारी रखा, वह ज़्यादा नज़दीकी दोस्त नहीं बना पाईं। किसी मुश्किल दिन के बाद ऐसा कोई नहीं होता था जिससे वह उसके बारे में बात कर सकें, या फिर दिल में अचानक आने वाला कोई ख़याल या कोई चिंता साझा कर सकें। उनके माँ-बाप अब दुनिया के दूसरे कोने में रहते थे, लेकिन यूँ भी वह उनके बहुत नज़दीक कभी नहीं रही थी। इतनी जल्दी शादी हो जाने के बाद, वह सब बातों से घबरा-सी गई थीं, इतनी जल्दी बच्चे का हो जाना, और उसकी देखभाल, और दूध की बोतलों को गरम करना और कलाई से छूकर देखना कि ठीक से गरम हैं या नहीं, जबकि राज स्वेटर और कॉर्डुरॉय पैंट पहनकर, अपने स्टूडेंट्स को चट्टानों और डायनोसॉर्स के बारे में पढ़ाने के लिए काम पर चला जाता था। राज कभी चिड़चिड़ा या परेशान नज़र नहीं आता था, और न ही मोटा, जैसे कि वह हो गई थीं, पहले बच्चे के बाद ही।

हमेशा थकी-थकी रहने के कारण, वह मना कर देती थीं जब उनकी कॉलेज की एक-आध दोस्त मैन्हैटन में लंच या खरीदारी के लिए उन्हें बुलाती थीं। आख़िरकार दोस्तों ने उन्हें बुलाना बन्द कर दिया, जिस कारण वह हमेशा चिड़चिड़ी और थकान से भरी हुई, बच्चे के साथ सारा दिन घर में पड़ी रहती थीं, खिलौनों से घिरी हुई, जिनसे चलते-चलते वह ठोकर खा जाती थीं या फिर बैठते वक्त टकरा जाती थीं। रॉनी के जन्म के बाद वे बस कभी-कभार ही बाहर गए थे, और मौज-मस्ती के लिए तो शायद ही कभी। राज को इससे फ़र्क नहीं पड़ता था; वह ख़ुशी-ख़ुशी पढ़ाकर घर आता और टेलीविज़न देखता और रॉनी को अपने घुटनों पर झुलाता। उन्होंने बहुत ग़ुस्सा किया था जब राज ने बताया कि उसका एक पंजाबी दोस्त, जिससे वह एक बार मिल चुकी थीं पर उन्हें याद नहीं था, न्यू ब्रुंसविक इलाक़े में किसी जॉब इंटरव्यू के सिलसिले में एक हफ़्ते के लिए उनके यहाँ रुकेगा।

बॉबी दोपहर के वक़्त उनके गर्भ में आया था, उस सोफ़े पर जिस पर रबड़ के खिलौने बिखरे पड़े थे, जब उस दोस्त को यह पता चला था कि लन्दन की एक फार्मास्यूटिकल कम्पनी ने उसे काम पर रख लिया है, और रॉनी अपनी बच्चा-गाड़ी में से बाहर आने के लिए चिल्ला रहा था। उन्होंने कोई विरोध नहीं किया था जब दोस्त ने उनकी कमर के निचले हिस्से को छुआ था, जिस वक़्त वह कॉफ़ी बनाने जा रही थीं, और उन्हें खींचकर अपने कड़क नीले सूट से सटा लिया था। उसने तेज़ी से, ख़ामोशी के साथ और ऐसी कुशलता से उन्हें प्यार किया जिससे वह हमेशा अनजान रही थीं, बिना उन अर्थपूर्ण अभिव्यक्तियों और मुस्कुराहटों के जिन पर राज बाद में हमेशा ज़ोर देता था। अगले दिन राज ने दोस्त को जेएफके छोड़ दिया था। वह अब शादीशुदा था, एक पंजाबी लड़की के साथ, और वे अभी भी लन्दन में ही रहते थे, और हर साल वे दोनों और राज और मीना, एक-दूसरे को क्रिसमस कार्ड भेजते थे, जिसके साथ दोनों दम्पति लिफाफे में अपने-अपने परिवारों की फोटो भी रख देते थे। उसे नहीं पता था कि वह बॉबी का बाप है। उसे कभी पता चलेगा भी नहीं।

"माफ़ कीजिए, मिसेज़ दास, लेकिन आपने यह सब मुझे क्यों बताया है?" मिस्टर कापसी ने पूछा जब उन्होंने आख़िर में अपनी बात ख़त्म की और उन्हें देखने के लिए एक बार फिर अपना सिर घुमाया।

"भगवान के लिए, मुझे मिसेज़ दास कहना बन्द कीजिए। मैं अट्ठाइस की हूँ। आपके बच्चे शायद मेरी उम्र के होंगे।"

"नहीं, ऐसा नहीं है।" यह जानकर मिस्टर कापसी को धक्का-सा लगा कि वह उन्हें एक बड़े-बुज़ुर्ग की नज़र से देख रही थीं। उनके मन में मिसेज़ दास के लिए जो एहसास था, जिस कारण वह गाड़ी चलाते वक़्त रियरव्यू मिरर में अपनी छवि निहारते रहते थे, थोड़ा धूमिल हो गया।

"मैंने आपकी ख़ूबियों की वजह से आपको बताया है।" उन्होंने मुरमुरों का पैकेट ऊपर से मोड़ कर बन्द किए बिना वापस अपने बैग में रख लिया।

"मुझे यह बात समझ नहीं आई," मिस्टर कापसी ने कहा।

"आप नहीं समझे? आठ सालों से मैं यह बात किसी को नहीं बता पाई, दोस्तों को नहीं, राज को तो बिल्कुल भी नहीं। उसे तो इस बारे में कोई शक़ भी नहीं है। वह समझता है मैं अभी भी उससे प्यार करती हूँ। ख़ैर, आपको इस बारे में कुछ नहीं कहना?"

"किस बारे में?"

"इसी बारे में जो मैंने आपको अभी बताया है। मेरे राज़ के बारे में, और इस बारे में कि इस बात से मैं कितना बुरा महसूस करती हूँ। अपने बच्चों की तरफ़ देखकर, और राज को देखकर, मैं कितना बुरा महसूस करती हूँ, हमेशा ही बहुत बुरा। मुझे बहुत बुरे-बुरे ख़याल आते हैं, मिस्टर कापसी, कि सब कुछ फेंक दूँ। एक दिन मुझे ऐसा लगा कि जो कुछ भी मेरा है, उसे खिड़की से बाहर फेंक दूँ, टेलीविज़न, बच्चे, सब कुछ। आपको नहीं लगता यह ठीक नहीं है?"

वह ख़ामोश रहे।

"मिस्टर कापसी, आपको कुछ नहीं कहना है? मुझे लगा था यह आपका काम है।"

"मेरा काम टूर पर ले जाना है, मिसेज़ दास।"

"वो नहीं। आपका दूसरा काम। दुभाषिए वाला।"

"लेकिन हमारे सामने तो भाषा की कोई रुकावट नहीं है। फिर यहाँ दुभाषिए की क्या ज़रूरत है?"

"मेरा यह मतलब नहीं है। नहीं तो मैं कभी आपको यह सब नहीं बताती। आप नहीं समझ रहे हैं, मेरे लिए इस बात का क्या मतलब है कि मैंने आपको यह सब बताया?"

"क्या मतलब है इसका?"

"इसका मतलब यह है कि मैं हर वक़्त की इस भयानक तक़लीफ़ से थक चुकी हूँ। आठ साल, मिस्टर कापसी, आठ साल से मैं इस दर्द से तड़प रही हूँ। मुझे उम्मीद थी, कुछ बेहतर महसूस करने में आप मेरी मदद करेंगे, कोई सही बात बताएँगे। कोई इलाज सुझाएँगे।"

उन्होंने मिसेज़ दास की तरफ़ देखा, लाल खानों वाली स्कर्ट और स्ट्रॉबेरी टी-शर्ट पहनी हुई एक ऐसी महिला जो अभी तीस की भी नहीं थी, जिसे न अपने पति से प्यार था न अपने बच्चों से, और ज़िन्दगी के साथ जिसका प्यार का रिश्ता पहले ही ख़त्म हो चुका था। उनका अपनी ग़लती मान लेना उन्हें उदास कर गया। मिस्टर दास के बारे में सोचकर वह और भी उदास हो गए जो टीना को कन्धे पर बिठाए ऊँचे रास्ते पर थे और अमेरिका में अपने छात्रों को दिखाने के लिए पहाड़ियों पर बनी प्राचीन मठ-गुफाओं की तस्वीरें ले रहे थे, और जिन्हें न तो शक़ था और न ही इस बात का पता था कि उनके दोनों बेटों में से एक उनका अपना नहीं है। मिस्टर कापसी को अपमान का अनुभव हुआ कि मिसेज़ दास ने अपने ओछे, तुच्छ-से राज़ के बारे में उनकी राय जाननी चाही। वह डॉक्टर के ऑफ़िस में आने वाले मरीज़ों की तरह नहीं दिखती थीं, जो भावहीन आँखों वाले और निराश नज़र आते थे, जो न आसानी से सो सकते थे, न साँस ले सकते थे और जिन्हें ठीक से पेशाब करने में भी तक़लीफ़ होती थी। सबसे बढ़कर, वे अपने दर्द को लफ़्ज़ों में बयान कर पाने में असमर्थ थे। फिर भी, मिस्टर कापसी को लगा कि मिसेज़ दास की मदद करना उनका फ़र्ज़ है। शायद उन्हें मिसेज़ दास को यह बताना चाहिए कि वह मिस्टर दास के सामने सच क़ुबूल कर लें। वह बताएँगे कि इस हालात में ईमानदारी सबसे अच्छा उपाय है। ईमानदारी से बेशक़ वह बेहतर महसूस करेंगी, जैसा कि वह चाहती हैं। शायद वह मध्यस्थ के तौर पर इस बातचीत में मदद करने के लिए कहेंगे। उन्होंने मामले की तह तक पहुँचने के लिए सबसे स्पष्ट प्रश्न से शुरुआत करने का फ़ैसला किया, और इसलिए उन्होंने पूछा, "क्या यह सच में दर्द है जो आप महसूस करती हैं, मिसेज़ दास, या फिर यह अपराध-बोध है?"

वह उनकी तरफ़ मुड़ीं और गुस्से से उन्हें घूरने लगीं, उनके रूखे गुलाबी होठों पर सरसों के तेल की मोटी परत जमी थी। उन्होंने कुछ बोलने के लिए अपना मुँह खोला, लेकिन जब उन्होंने मिस्टर कापसी की तरफ़ ग़ुस्से से देखा तो ऐसा लगा जैसे उनकी आँखों के सामने कोई ख़ास विचार कौंध गया, और वह रुक गईं। इस बात ने मिस्टर कापसी को तोड़ दिया; उस पल वह जान गए कि उनकी इतनी भी अहमियत नहीं थी कि उन्हें ठीक से बेइज़्ज़त करने लायक़ भी समझा जाए। मिसेज़ दास ने कार का दरवाज़ा खोला और रास्ते पर ऊपर की ओर जाने लगीं, अपनी चौकोर लकड़ी की हील पर थोड़ा लड़खड़ाती हुईं, मुट्ठीभर मुरमुरे खाने के लिए अपने स्ट्रॉ बैग में हाथ डालती हुईं। मुरमुरे उनकी उँगलियों के बीच से निकलकर एक तिरछी लक़ीर बनाते हुए नीचे गिरने लगे, जिसे देखकर एक बन्दर उछलकर एक पेड़ से नीचे आया और मुरमुरों के छोटे-छोटे सफ़ेद दानों को खाने लगा। और अधिक मुरमुरों की तलाश में, बन्दर मिसेज़ दास के पीछे-पीछे जाने लगा। दूसरे बन्दर भी उसके साथ आ गए, यानी जल्द ही लगभग छ:-सात बन्दर उनके पीछे चलने लगे, जिनकी मखमली पूँछ उनके पीछे-पीछे घिसट रही थीं।

मिस्टर कापसी कार से बाहर निकल गए। वह चिल्लाना चाहते थे, किसी तरह से उन्हें सावधान करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने सोचा कि अगर वह जान जाएँगी कि बन्दर उनके पीछे हैं, तो वह घबरा जाएँगी। शायद वह अपना संतुलन खो बैठेंगी। शायद वे उनका बैग या उनके बाल खींचने लगेंगे। वह तेज़ क़दमों से रास्ते पर ऊपर की ओर जाने लगे, बन्दरों को डरा कर भगाने के लिए नीचे पड़ी एक टहनी अपने हाथ में लिए हुए। मिसेज़ दास चली जा रही थीं, बेख़बर, मुरमुरों के दानें बिखेरती हुईं। ढलान की चोटी के पास, गुफाओं के समूह के सामने, जिनके आगे मोटे पत्थर के खंभों की कतार थी, मिस्टर दास अपने कैमरे का लेंस ठीक करते हुए ज़मीन पर झुके थे। बच्चे मेहराबों के नीचे खड़े थे, कभी छिपते हुए, कभी सामने आते हुए।

"मेरे लिए रुको," मिसेज़ दास दूर से चिल्लाईं। "मैं आ रही हूँ।"

टीना ऊपर नीचे कूदने लगी- "मम्मी आ गईं।"

"अरे वाह," मिस्टर दास ने ऊपर देखे बिना कहा। "बिल्कुल सही वक़्त पर आई हो। मिस्टर कापसी से कहते हैं कि हम पाँचों की एक तस्वीर ले लें।"

मिस्टर कापसी ने अपनी चाल तेज़ कर दी, टहनी को घुमाते हुए जिससे बन्दर डरकर दूसरी दिशा में भाग गए।

"बॉबी कहाँ है?" मिसेज़ दास ने रुककर पूछा।

मिस्टर दास ने कैमरे से चेहरा हटाकर ऊपर की ओर देखा। "मुझे नहीं पता। रॉनी, बॉबी कहाँ है?"

रॉनी ने कन्धे उचका दिए, "मुझे लगा था वो यहीं है।"

"कहाँ है वो?" मिसेज़ दास ने तेज़ आवाज़ में फिर पूछा। "तुम सब को हो क्या गया है?"

वे उसका नाम लेकर उसे पुकारने लगे, रास्ते पर थोड़ा ऊपर और नीचे की तरफ़ घूम-घूमकर। क्योंकि वे चिल्ला रहे थे, इसलिए शुरू में उन्हें बच्चे की चीखें सुनाई नहीं दीं। जब वह उन्हें दिखाई दिया, रास्ते पर थोड़ा नीचे की ओर एक पेड़ के नीचे, तो लगभग बारह बन्दरों के एक समूह ने उसे घेर रखा था, जो अपनी लम्बी काली उँगलियों से उसकी टी-शर्ट खींच रहे थे। मिसेज़ दास द्वारा गिराए गए मुरमुरे उसके पैरों के पास बिखरे पड़े थे, जिन्हें बन्दर अपने हाथों से बटोर रहे थे। बच्चा चुप था, उसक शरीर डर से स्थिर हो गया था, उसके भयभीत चेहरे पर तेज़ आँसू छलक रहे थे। उसकी नंगी टाँगें धूल से सनी थीं और उन जगहों पर घाव से लाल हो गई थीं जहाँ एक बन्दर लगातार उसे उस डंडी से मार रहा था जो बच्चे ने पहले उसे दी थी।

"डैडी, बन्दर बॉबी को मार रहा है," टीना ने कहा।

मिस्टर दास ने अपने शॉर्ट्स के आगे वाले हिस्से से अपनी हथेलियों को पोंछा। घबराहट में उन्होंने ग़लती से कैमरे का शटर दबा दिया। फोटो खिंचने की घर्र-घर्र की आवाज़ ने बन्दरों को और भड़का दिया और डंडी वाला बन्दर बॉबी को और तेज़-तेज़ मारने लगा। "हमें क्या करना चाहिए अब? इन्होंने हमला कर दिया तो?"

"मिस्टर कापसी," उन्हें एक तरफ़ खड़ा देखकर मिसेज़ दास चिल्लाईं। "कुछ कीजिए, भगवान के लिए, कुछ कीजिए!"

मिस्टर कापसी ने अपनी टहनी उठाई और बन्दरों को भगाने लगे, जो अभी डटे हुए थे उन पर चिल्लाते हुए और उन्हें डराने के लिए पैर पटकते हुए। बन्दर नपे-तुले क़दमों से, धीरे-धीरे पीछे हटने लगे, बात मानते हुए लेकिन बिना डरे। मिस्टर कापसी ने बॉबी को अपनी बाहों में उठाया और वापस वहाँ ले आए जहाँ उसके माँ-बाप और भाई-बहन खड़े थे। जब वह उसे उठाकर ला रहे थे, तो उन्हें बच्चे के कान में एक राज़ धीरे से बोल देने की तीव्र इच्छा हुई। लेकिन बॉबी बुत बना हुआ था, और डर से काँप रहा था, और उसकी टाँगों में उस जगह थोड़ा खून निकल रहा था जहाँ डंडी की चोट से खाल उधड़ गई थी। जब मिस्टर कापसी उसे उसके माँ-बाप के पास लेकर आए, तो मिस्टर दास ने बच्चे की टी-शर्ट से थोड़ी धूल झाड़ी और उसका वाइज़र ठीक से उसके सिर पर लगा दिया। मिसेज़ दास ने बैंडेज निकालने के लिए अपने स्ट्रॉ बैग में हाथ डाला और बच्चे के घुटने पर लगे घाव पर उसे लगा दिया। रॉनी ने एक नई च्यूइंग गम अपने भाई को दी। "वो ठीक है। बस थोड़ा डर गया है, है ना, बॉबी?" मिस्टर दास ने उसके सिर को थपथपाते हुए कहा।

"हे भगवान, यहाँ से चलते हैं," मिसेज़ दास ने कहा। उन्होंने अपने सीने पर बनी स्ट्रॉबेरी पर अपने हाथ बाँध लिए। "इस जगह से मुझे दहशत हो रही है।"

"हाँ। बिल्कुल, होटल वापस चला जाए," मिस्टर दास ने सहमति जताई।

"बेचारा बॉबी," मिसेज़ दास बोलीं। "एक सैकेंड इधर आओ। मम्मी को बाल ठीक करने दो।" उन्होंने एक बार फिर अपने स्ट्रॉ बैग में हाथ डाला, इस बार हेयरब्रुश के लिए, और पारदर्शी वाइज़र के किनारों पर ब्रुश से बाल ठीक करने लगीं। जब उन्होंने हेयरब्रुश निकाला, तो वह काग़ज़ का पुर्ज़ा, जिस पर मिस्टर कापसी का पता लिखा था, हवा में फड़फड़ा कर उड़ गया। मिस्टर कापसी के अलावा किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने देखा कि वह हवा के झोंके के साथ ऊपर, और ऊपर उड़ता हुआ उन पेड़ों की तरफ़ चला गया जहाँ अब बन्दर बैठे हुए, गंभीरता से, नीचे का दृश्य देख रहे थे। मिस्टर कापसी भी इसे देख रहे थे, यह जानते हुए कि दास परिवार की यही वो तस्वीर है जो वह हमेशा अपने दिलोदिमाग़ में सँभाल कर रखेंगे।

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