तुम लोगों से डरती हो

15-11-2019

तुम लोगों से डरती हो

अश्वनी कुमार 'जतन’

बेमतलब की बातें हैं सब, 
जो कुछ भी तुम करती हो,
लोग नहीं डरते हैं रब से, 
तुम लोगों से डरती हो,


लोगों की परवाह करो ना, 
अपना केवल ध्यान धरो,
सबकी इज़्ज़त करो परन्तु, 
अपना भी सम्मान करो,
व्यर्थ की बातों में जानेमन, 
आख़िर तुम क्यों पड़ती हो,


लोग नहीं डरते हैं रब से, 
तुम लोगों से डरती हो,


ग़लती पर दुनिया वाले ये, 
इज़्ज़त ख़ूब उछालेगें,
काम सही होगा फिर भी ये, 
उसमें नुक़्स निकालेंगे
यही तेरा रस्ता रोकेंगे,
जिन्हें साथ ले बढ़ती हो,


लोग नहीं डरते हैं रब से, 
तुम लोगों से डरती हो,


दुनिया के ये लोग मिलेंगे, 
फिर तुमको उकसाएँगे,
यही लोग मिलकर के तुमको, 
धक्का मार गिराएँगे,
दुनिया वाले नहीं किसी के, 
जिन पर ख़ूब अकड़ती हो,


लोग नहीं डरते हैं रब से, 
तुम लोगों से डरती हो,


दुनिया के डर से ना करना, 
काम तुम्हें जो भाए ना,
आज तलक ये दुनिया वाले, 
काम किसी के आए ना,
"जतन" व्यर्थ की उलझन में 
क्यों अपने आप जकड़ती हो,


लोग नहीं डरते हैं रब से, 
तुम लोगों से डरती हो।

1 टिप्पणियाँ

  • 18 Nov, 2019 05:46 AM

    Very emotional text and very well written. Your choice of words in immaculate. brilliant descriptions. God Bless You.

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