दूर पलाश के फूलों के बीच
सूरज की एक किरण फूटी,
लगा-
अलसाई हुई सी तुम जागीं।
झरनों की कल-कल और
चिड़ियों की ‘चिक -चिक सुन
लगा-
तुमने कोई मधुर गीत गाया।
धीरे-धीरे जो चली पुरवाई
पेड़ों के पत्ते यूँ सरसराए
लगा-
तुमने शरमा के मुखड़ा छिपाया।