तेरी  आहट

15-02-2020

तेरी  आहट

कविता (अंक: 150, फरवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

तेरे जाते
क़दमों की आहट 
कानों ने नहीं 
दिल ने सुनी थी....
कानों के सुने को ,
शायद झुठलाता दिल
परन्तु, अपने पर प्रश्नचिन्ह?
असंभव 
मानना, असंभव
झुठलाना, असंभव 
जब सब असंभव 
तो जाना संभव??????
दिल की दहलीज़ पार कर
जब तुम आए थे 
दबे पाँव
बिना कोई आहट,
पता भी ना चलने दिया
चुपचाप, 
बसेरा डाल कर बैठ गये दिल में।
ऐ दिल!
तू भी बहरा हो गया था रे, क्या तब....
अब क्यों सुना रे तुमने?
अब क्यों बहरे ना हुए?
तब आहट सुनी होती
शायद कुछ बच  जाता 
अब तो 
सन्नाटा सिर्फ़ सन्नाटा....
पसरा है चहुँ  और...
गूँजती है 
जाते क़दमों की आहट
बस  आहट
तेरी  आहट

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