स्पन्दन

01-04-2021

स्पन्दन

प्रवीण शर्मा (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

नहीं उड़े मेरे साथ–
वे हज़ारों पक्षी 
जो मेरे भीतर
उड़ाने भरते रहे 
फूट कर बाहर 
नहीं निकले–
वे असंख्य झरने 
जो मेरे भीतर 
दबे स्वरों में 
रोते रहे 
वे बन्दी पक्षी–
जो फड़फड़ाते रहे 
वे अवरुद्ध झरने–
जो कुलबुलाते रहे 
कहीं वही तो नहीं थे 
स्पन्दन जीवन के!

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें