मेरे व्यग्राकार चेहरे पर तेरी सलोनी तन्द्रा अधरों से मनोरम गीत आखिर क्यूँ गुनगुनाती है मेरे लिए। मैं गुंफन में पड़ा हूँ। सादर-सस्नेह तेरे अधरों पर चाहता हूँ क्यूँ मैं समर्पण करना अपना गीत फिर भी तेरे लिए।