सफ़र (महेश पुष्पद)
महेश पुष्पदरास्ते कभी बीहड़,
और सुनसान मिलेंगे,
दुनिया में हर तरह के,
इंसान मिलेंगे।
दीपक हो तुम,अपनी
लौ को बुझने न देना,
आँधियाँ भी होंगी,
भयंकर तूफ़ान मिलेंगे।
दुनिया की भीड़ भरी,
हँसीं राहों से न गुज़रना,
सही हैं जो रास्ते,
सब वीरान मिलेंगे।
थक जाओ किसी पल,
तो ख़ुदा को याद करना,
सहारे तुम्हे कितने ही,
ख़ुद आन मिलेंगे।
बढ़ने न देंगे तुम्हें वो,
नेकी की राहों पर,
इंसान के रूप मे जो
शैतान मिलेंगे।
माँ का दामन थाम लेना,
जब हताशा घेर ले,
हौंसले कई बहुत
बलवान मिलेंगे।
फिर भी अविचलित भाव से,
सतत बढ़ते जाना,
घोर तम में राह दिखाने,
ख़ुद भगवान मिलेंगे।