पटरियों पे दफ़न हुई आश
डॉ. गोरख प्रसाद ’मस्ताना’पटरियों पे दफ़न हुई आश
क्षत विक्षत बिखर गयी लाश
खाये, पीये,अघाये लोग
मज़दूरों का दुख बूझते काश!
घर से मिलने का स्वप्न, प्राण में अटक गया
जीवन ही अनजानी राह में भटक गया
आँख को न हो रहा विश्वास
इंतज़ार नयनों में मुरझा के रह गया
गाँव से मिलने का सपन मौत बन के बह गया
राह में ही टूट गयी साँस
झेल रहे जन जो भी भूख ग़रीबी का दंश
लाचारों पर हँसता आज भी अमीर वंश
दीनता पे कंस का अट्टहास
एक ओर है प्रकृति, लाल दृग लिए खड़ी
दूजे शासन की बात, खोखली बड़ी बड़ी
हद ये, निराशा भी है निराश
पटरियों पे दफ़न हुई आश...