नदियाँ
सतीश सिंहहज़ार-हज़ार
दु:ख उठाकर
जन्म लिया है मैंने
फिर भी औरों की तरह
मेरी साँसों की डोर भी
कच्चे महीन धागे से बँधी है
लेकिन
इसे कौन समझाए इंसान को
जिसने बना दिया है
मुझे एक कूड़ादान।
हज़ार-हज़ार
दु:ख उठाकर
जन्म लिया है मैंने
फिर भी औरों की तरह
मेरी साँसों की डोर भी
कच्चे महीन धागे से बँधी है
लेकिन
इसे कौन समझाए इंसान को
जिसने बना दिया है
मुझे एक कूड़ादान।