मेरी कविता (वैद्यनाथ उपाध्याय)
वैद्यनाथ उपाध्यायमेरी कविता
मानव मस्तिष्क से
मानव बस्ती तक पहुँचने की
सीढ़ी है।
आदमी को आदमी होने का
हुनर सिखाती कविताएँ
उसके भावावेग को उद्वेलित कर
उसे सच्ची राह पर
चलने को
कचोटती हुई कविता
कहीं टकराकर बिखर जाती है
और आगे
एक धुँधलाया हुआ आकाश है
कहीं उद्दीप्त सूरज नहीं है
केवल अँधेरा है
मेरा कपोल-कल्पित मानव
वहीं खो गया है
मैं हर कविता की पंक्तियों में
बार बार
उसे ढूँढ़ता रहता हूँ।