माँ तेरी ममता को बहुत याद करता हूँ,
जब चल देता हूँ
ख़्वाबों की पोटली को ले साथ,
थामे नयी सहर में
नयी धुंधली सी आशाओं का हाथ,
दिनभर की ज़द्दो-ज़हद से हारकर,
ख़्वाबों की खाली, अधभरी पोटली को –
फिर से काँधे पे टाँगकर ..,
लौट आता हूँ जब
किराये की उन चार दीवारों में...
माँ तेरी ममता को बहुत याद करता हूँ!!!