कुकुरमुत्तों - सा प्यार

15-03-2020

कुकुरमुत्तों - सा प्यार

कविता (अंक: 152, मार्च द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

कुकुरमुत्तों जैसा
बन गया है अब प्यार
जहाँ देखो, जिसे देखो
उसे हो रहा है 
ये अनोखा 
कुकुरमुत्तों - सा प्यार।


खुद -ब-खुद हो जाता है 
ना शक्ल देखता है,
ना अक़्ल देखता है।
ना छोटा, ना बड़ा।
ना किसी  की उम्र का
लिहाज़ करता है।
जादू - सा 
बस हो जाता है,
एकदम से
ये आजकल का  
कुकुरमुत्तों - सा प्यार...  
 

इधर - उधर हर तरफ़
गाव में, शहर में
स्कूल में, कॉलेज में,
ऑफ़िस में, पड़ोस में
कुकुरमुत्तों जैसा प्यार
महकने लगा है। 
हर दिल में,
गहरी पैठ है इसकी
बंजर दिलों में भी,
अपनी जगह बना लेता है
ये आजकल का 
कुकुरमुत्तों -सा प्यार


बूढ़ों को जवान कर,
वीरानों को महका देता है 
बचपन को जवान कर,
जंगल में मंगल करवा देता है 
सूखे फूल फिर से 
महक उठते हैं इसके स्पर्श से
ग़ज़ब की ख़ुश्बू है इस
आजकल के
कुकुरमुत्तों से प्यार में.....


हर उम्र की
मृत रूहों में फिर से,
जान फूँक  रहा है।
मरने की उम्र में,
जवानी दिला रहा है।
जाने क्या - क्या कर रहा है?
असंभव को भी 
संभव कर रहा है
ये आजकल का
कुकरमुत्तों - सा प्यार।

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