जो झुकाता स्वयं आसमान है!

01-07-2021

जो झुकाता स्वयं आसमान है!

कविता झा (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

कमियों को छोटे करते देखा है,
अक्षमता से लड़ दूर करते देखा है,
हौसलों से उड़ान भर कर ही तो,
‘भरत कुमार’ को तैराकी में,
कई ख़िताब जीतते देखा है।
 
दुर्बलता से लड़ते देखा है,
बिन पाँव के नाचते देखा है,
अपने सुदृढ़ सबल मन से,
‘सुधा चंद्रन’ को एक बार फिर,
बेपरवाह नृत्य करते देखा है।
 
पर्वत को नत मस्तक होते देखा है,
शीश झुका रास्ता देखते देखा है,
अपने पहाड़ से भी प्रचंड साहस से,
‘अरुणिमा सिंह’ को बेधड़क जोश से,
एवरेस्ट की ऊँचाई चूमते देखा है।
 
जंग में उतर कर लड़ते देखा है ,
मैदान में छक्के छुड़ाते देखा है,
अपने अदम्य संकल्प से ही तो,
‘प्रीति श्रीनिवासन’ को बेख़ौफ़
क्रिकेट के संग्राम में देखा है।
 
कठिनाइयों को मरते देखा है,
कंधे के बोझ से लड़ते देखा है,
मन में नव जोश भर कर ही तो,
‘गिरीश शर्मा’ को बिना डरे,
रेस में साइकिल चलाते देखा है।
 
कमियों को ताक़त बनाते देखा है,
हर परिस्थिति से जूझते देखा है,
नव आयामों को स्वीकार कर ही तो,
‘हॉकिंग’ को दिन-रात एक कर,
विज्ञान में जीवन झोंकते देखा है।
 
कभी भी हार ना मानते देखा है,
हार को अंततः पछाड़ते देखा है,
गिरकर बार-बार उठ कर ही तो,
‘हेलेन केलर’ को हिम्मत की घुट्टी से,
विशेष पहचान बनाते देखा है।
 
आसमान के पार जाते देखा है,
मर कर भी अमर रहते देखा है,
तक़दीर को मोड़ कर ही तो,
‘आइन्स्टाईन’ को पागल हो,
विज्ञान से विश्व सँवारते देखा है।
 
इन सब में एक चीज़ तो समान है,
समझ गए थे वे कि हार कर थक,
अक्षमता रुकने का नहीं नाम है,
नाम उनका ही होता है जग में,
जो झुकाता स्वयं आसमान है।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें