हाथों में तेरा चेहरा हो

01-11-2020

हाथों में तेरा चेहरा हो

गंगाधर शर्मा 'हिन्दुस्तान' (अंक: 168, नवम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

सन्दर्भों को छोड़ प्रिये, 
आ! आसमान के पार चलें।
ना डोली की रहे ज़रूरत,
ना संग कोई कहार चले॥
 
वहाँ चंद्र न होगा, 
बस तेरा आनन होगा।
नील गगन की जगह तुम्हारा, 
लहराता दामन होगा॥
 
सृष्टि का मतलब बस 
'मैं’ और 'तुम' होंगे।
तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में, 
मीठे सपनों में गुम होंगे॥
 
मलय-समीर नहीं होगा, 
बस तेरी ख़ुशबू होगी।
हर और बस एक शय,
'तू' केवल 'तू' होगी॥
 
कर जब जिस ओर बढ़ाऊँगा।
तेरा स्पर्श कर पाऊँगा॥
 
रफ़्तार वक़्त की थम जाए, 
हाथों में तेरा चेहरा हो।
मेरा विश्वास तुम्हारी बिंदिया, 
तेरा प्यार ही सेहरा हो॥
 
बस हमारी चाहत हो, 
और कुछ भी तो न हो। 
  
बाह्य अलंकारों का आडम्बर, 
सारा यहीं उतर चलें॥ 
सन्दर्भों को छोड़ प्रिये, 
आ आसमान के पार चलें॥

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