एक ललित गीत
डॉ. गोरख प्रसाद ’मस्ताना’पतझड़ मेरे नाम से लिख दे, बसंत अपने पाले रख
तम बयनामा कर दे मुझको, ख़ुद सुरमयी उजाले रख
मेरा क्या मैं मरूँ भले, मुस्कान से अपनी डंस दे
मेरा रहना क्या रहना बस, बाँह से अपनी कस दे
छाले मेरे पाँव में भर दे, स्वयं को सुमन हवाले रख
मेरे जीवन का अवसान, मुझे हो भले मुबारक
रूप तुम्हारा चन्द्र ज्योत्सना का, पल छिन हो धारक
मेरे नाम झुर्रियाँ लिख, अपना सौंदर्य सँभाले रख
तेरे नयन बान से घायल, होना लगता अच्छा
यहीं प्रेम का प्रत्यावर्तन, पाता है सुख सच्चा
मर मर जीते दिलवाले, उनपर ये भाव निराले रख
विहग भले मैं पर तू ही, मेरी उड़ान का पर हो
अपर भले मैं हो जाता, पर तू साक्षात सपर हो
भले थकूँ मैं तू निज को नित, नव ऊर्जा में ढाले रख