एक कविता
डॉ. गोरख प्रसाद ’मस्ताना’अक्षरों का फूल चंदन
शब्द जब ले करें वंदन
बनी कविता
बूँद शीतल बने वर्षण
रश्मियों का सुघर नर्तन
धूप का हो सुनहलापन
विहग वृन्दों का हो गायन
बनी कविता
जब हवाएँ भरे चंदन
शिल्प बिम्बों का हो स्यन्दन
कल्पना में भाव नूतन
क़लम का भी हो समर्थन
बनी कविता
दर्प से हो दूर तनमन
साधना ही बने साधन
लक्षणा का दीप प्रज्वलन
व्यंजनामय गीत गुंजन
बनी कविता
हृदय में आनन्द वर्धन
हो सुवासित मनन चिंतन
सर्वदा परमार्थ लेखन
नयन से करुणा का तर्पण
बनी कविता