बूढ़े होते हुए

04-11-2017

बूढ़े होते हुए

सतीश सिंह

बाल तुम्हारे सफ़ेद हो गये
कितने के हो जाओगे इस साल
चालीस से तीन ज़्यादा
लेकिन बच्चे तो तुम्हारे छोटे हैं
जूते समेत
घर के अंदर घुसने पर
पत्नी ने
फटकार लगाते हुए कहा,
बूढ़े हो गये,
लेकिन,
अभी भी तुम्हें
अक्ल नहीं आई

आज छोटी बेटी ने स्कूल से आते ही
उलाहना दिया
आप बालों में
कालिमा क्यों नहीं लगाते
मेरी दोस्त कह रही थी
बूढ़े बाबा
जो तुम्हें स्कूल छोड़ने आते हैं
क्या तुम्हारे दादा हैं

क्षितिज में लाली रहने तक
घूमता रहता हूँ लहरों संग
अनवरत चलता है
कामों का सिलसिला
हर दिन अँधेरों से
प्रतिस्पर्धा करता हूँ
उच्च ज्वार
अभी भी आते हैं मुझमें

मैं ही सुलझाता हूँ उलझने
मैं ही सँवारता हूँ घर को
सूरज-चाँद मैं ही हूँ
नैया का खेवनहार भी मैं ही हूँ

क्या मैं
चिर युवा नहीं दिख सकता
क्या मैं
बालों की सफ़ेदी को
उसका हद नहीं दिखा सकता
क्या मैं
कटाक्षों को
खूँटी पर नहीं टाँग सकता
क्या मैं
बच्चों से
थोड़ी चंचलता
उधार नहीं ले सकता

मैं तो उगता सूरज हूँ
नभ का चमकता सितारा हूँ
समंदर की रवानगी हूँ
नदी की मिठास हूँ

ठहरो,
बच्चों की निश्छलता
मुझ में भी रहने दो
युवाओं की दीवानगी
को जीने दो मुझे
तूफ़ान की तेज़ी को
पनपने दो मुझमें
आकाश की तरह
अनंत होने दो मुझे
फगुनाहट की बयार में
बहने दो मुझे
सवाल मत खड़े करो
जीने दो मुझे
एक मदमस्त ज़िंदगी

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