भट्ठी

डॉ. पूनम तूषामड़ (अंक: 166, अक्टूबर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

गृहस्थी की भट्ठी
में औरतें झोंक देती हैं
अपना समूचा जीवन
और सोचती रहती हैं
शायद!
कि वे पक रही हैं
धीरे-धीरे निखर
जाएँगी कुंदन सी
फिर अचानक ...
महसूसती है ताप
निहारती हैं ख़ुद को
फिर सोचती हैं कि
पका तो कुछ नही
किन्तु ..
बहुत कुछ जल गया।

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