बैरन निन्दिया

15-09-2020

बैरन निन्दिया

कविता (अंक: 164, सितम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

बेचैन है क्यों 
पता नहीं?
दिल को पर 
क़रार आता नहीं?
मुद्दत हो गई 
सोये हुए ,
जागने का 
कारण पता नहीं?...
 
सूनी है आँखें 
तब भी  नींद 
इनमें बसती नहीं 
बैरन बन गयी है
नींद क्यूँ  पता नहीं?...
 
करवट दर करवट 
सलवट पर सलवट
आबाद है  बिस्तर 
करवटों की सलवटों से
पर नैना है वीरान 
पता नहीं क्यूँ?...
 
नींद सखी अब 
मिलने आती नहीं
दूर बैठी है बैरन 
पास आती नहीं
वीरान नयनों को
आबाद करने 
सखी अब आती नहीं
पता नहीं क्यूँ?...
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें