स्व. विद्याभूषण ’श्रीरश्मि’
विद्याभूषण "श्रीरश्मि" हिन्दी अकादमी द्वारा पुरस्कृत लेखक थे। यह पुरस्कार उन्हें स्वयं उनके जीवन पर आधारित उपन्यास, "दिव्यधाम", के लिए 1987 में मिला था। विद्याभूषण "श्रीरश्मि" (11 दिसम्बर 1930 - 25 अगस्त 2016) का वास्तविक नाम विद्याभूषण वर्मा था।
वे मात्र 16 वर्ष की वय में दिल्ली के "दैनिक विश्वमित्र" समाचारपत्र के सम्पादकीय विभाग में नौकरी करने लगे। वे रात में काम करते और दिन में पढ़ते। अल्प वेतन से फ़ीस के पैसे बचा-बचा कर उन्होंने विशारद, इंटरमीडियेट, साहित्यरत्न, बी. ए. तथा एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
"श्रीरश्मि" ने "दैनिक विश्वमित्र" के अतिरिक्त "दैनिक राष्ट्रवाणी", "दैनिक नवीन भारत", साप्ताहिक "उजाला", साप्ताहिक "फ़िल्मी दुनिया" तथा मासिक "नवनीत" के सम्पादन में भी सहयोग दिया। वे 1959 से भारतीय सूचना सेवा से सम्बद्ध हो गये।
"श्रीरश्मि" की लगभग तीन सौ रचनायें 1960 के दशक की प्रमुख हिन्दी, उर्दू, गुजराती तथा कन्नड़ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। हिन्दी पत्रिकाओं में से कुछ के नाम हैंः "नीहारिका", "साप्ताहिक हिन्हुस्तान", "कादम्बिनी", "त्रिपथगा", "सरिता", "मुक्ता", "नवनीत", "माया", "मनोहर कहानियाँ", "रानी", "जागृति" तथा "पराग"।
उनके उपन्यास हैंः
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"दिव्यधाम", "तो सुन लो",
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"प्यासा पंछीः खारा पानी",
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"धू घू करती आग",
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"आनन्द लीला",
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"यूटोपिया रियलाइज़्ड"
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"द प्लेज़र प्ले"।
अन्य प्रकाशित पुस्तकें:
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"विहँसते फूल, नुकीले काँटे" नाम से महापुरुषों के व्यंग्य-विनोद का संकलन
"श्रीरश्मि" द्वारा अनुवादित रचनायें:
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"डॉ. आइन्सटाइन और ब्रह्मांड",
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"हमारा परमाणु केन्द्रिक भविष्य",
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"स्वातंत्र्य सेतु",
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"भूदान यज्ञः क्या और क्यों",
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"सर्वोदय और शासनमुक्त समाज",
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"हमारा राष्ट्रीय शिक्षण" तथा
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"विनोबा की पाकिस्तान यात्रा"।