ज़िन्दगी

01-12-2021

ज़िन्दगी

टीकम नागर ’राधे’ (अंक: 194, दिसंबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

बसर तो हो ही रही है ज़िन्दगी, मगर; 
ख़ूबसूरत भी होने लगी है ज़िन्दगी। 
 
जीने की वज़ह तो वैसे बहुत सारी हैं मगर, 
एक तेरे होने से ही तो लाजवाब है ज़िन्दगी। 
 
मुलाक़ात के ख़्वाब अब देखती है निगाहें, 
’राधे’ उन मुलाक़ातों का इंतज़ार है ज़िन्दगी। 
 
क्या शर्म, क्या हया, तनिक नहीं अब संकोच मुझे; 
एक तेरे साथ होने से ही तो गुलज़ार है ज़िन्दगी। 
 
आने जाने वालों का लम्बा क़िस्सा रहा है जीवन में, 
एक तेरे आने से ठहर गया मैं, वही ठहराव है ज़िन्दगी। 
 
मुझे याद है जब तुम्हें पहली नज़र देखा था, 
नज़र ने फिर किसी नज़र न देखा, वही दीदार है ज़िन्दगी। 
 
फ़िलहाल राह मुझे नहीं मालूम मगर, 
मिलन की जो आस है, वही आस है ज़िन्दगी। 

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