ज़िन्दगी
अनिल कुमार
आज जब भी देखा
मैंने खिड़की से बाहर झाँक कर
तब हर पल महसूस किया कि
ज़िन्दगी सच में
कितनी मुश्किल है!
क्योंकि खिड़की के उस तरफ़-
कार्यरत थे
निचले तबक़े के कुछ लोग
रंग रोग़न के काम में
जो लकड़ी की बनी सीढ़ी की—
लरज़ती पगडंडियों से चलकर
बिल्डिंग के छज्जों तक पहुँचकर
मौतनुमा ऊँचाई को छूकर
अपने जीने का सामान कर रहे थे . . .!