व्याख्या

06-03-2016

व्याख्या

अविचल त्रिपाठी

सारे सम्बन्ध हमारे,
किसी औरत के साथ.
गर्भ से बिस्तर तक के 
विभिन्न “प्रक्रमो” 
तक ही सीमित होंगे,
मन की गाँठें खोलकर भी उसकी,
हम अधिकतम, “अध्ययन”
ही कर पाएँगे, उनका.. शायद, 
और वह अपूर्ण होगा, निश्चय ही,

 

क्यूँ?
जवाब बहुत आसन है साधो,
तुम चाह कर भी 
माँ नहीं बन सकते,
किसी माँ की भूमिका 
निभा लो अगर चाहो तो,

 

बहुत समझोगे गूढ़ता 
सशक्तिकरण की तो,
संवेदनशील हो जाओगे.. 
मुद्दों पर, मगर फिर भी, 
अपने सीने के उभार कभी
शायद ही भार लग पाएँ तुम्हें,
माना बर्तन झाड़ू खाना में
हाथ बँटाओगे उसके साथ,
बिना रंज के भी,
मगर कुछ कामों से 
अपना जन्मजात नाता
कभी नहीं जोड़ पाओगे तुम..

 

तुम कभी औरत 
नहीं हो पाओगे, बंधु,
बर्तन झाड़ू खाना
या कोई "ज़िम्मेदारी" निभाते वक़्त,
तुम्हे अपने तन को ढँकने की 
परवाह नहीं करनी होगी,
अपने ईगो और 
कम्फर्ट लेवल के भी परे..

 

और हर ऐसे वक़्त, 
तुम जहां में शायद, 
स्तर उठा रहे होगे 
अपना, कुछ नज़रों में। 
अनायास ही भले..
पर इस बात से बेपरवाह,
कि कोई क़ीमत नहीं 
होती इन कामों की,
अगर हाथ पुरुष के न हों तो..

 

जानते हो और 
क्यों है नामुमकिन,
किसी औरत को महसूस कर पाना,
एक इतिहास है उसका भी,
तुम्हारी ही तरह, 
तुम्हारी वीरता के 
पन्नों के बीच बिखरा,
पर जिसे बाक़ायदा कन्विंस करके,
छुपाया नहीं गया है तुमसे..

 

नहीं लिख सकते हो 
तुम औरत को,
अपनी कविता में,
तुम्हारी जागरूकता,
कर्तव्यबोध या नैतिकता
 पर आधारित होगी,
और औरत की..?
उससे जुड़ी गर्भनाल है,
जो उसे दुनिया में साँस लेने भर का 
पोषण लेने की आज्ञा देती है..

 

हमारे लिखे भावुकतम शब्द भी,
किसी औरत के बलात्कार 
की व्याख्या से ज़्यादा 
कुछ नहीं हो सकते..!

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